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Post by geetamanika on Dec 15, 2013 23:05:18 GMT 5.5
ततः स विस्मयाविष्टो हृष्टरोमा धनंजयः । प्रणम्य शिरसा देवं कृताझ्जलिरभाषत ॥ १४॥ dl.dropbox.com/u/55233059/C11/SGeeta1114.mp3Then Arjuna, filled with wonder and his hairs standing on end, bowed his head to the Lord and prayed with folded hands. (11.14) उसके उपरान्त वह आश्चर्यचकित हुआ हर्षित रोमों वाला (जिसे रोमांच का अनुभव हो रहा हो) धनंजय अर्जुन विश्वरूप देव को (श्रद्धा भक्ति सहित) शिर से प्रणाम करके हाथ जोड़कर बोला। ।।11.14।। અચરજ પામેલો વળી રોમાંચિત અર્જુન, શીશ નમાવીને વદ્યો રોમંચિત અર્જુન. .. .. --------- अर्जुन उवाच । पश्यामि देवांस्तव देव देहे सर्वांस्तथा भूतविशेषसंघान् ॥ ब्रह्माणमीशं कमलासनस्थ मृषींश्चसर्वानुरगांश्च दिव्यान् ॥ १५॥ dl.dropbox.com/u/55233059/C11/SGeeta1115.mp3Arjuna said: O Lord, I see in Your body all the gods and multitude of beings, all sages, celestial serpents, Lord Shiva as well as Lord Brahmaa seated on the lotus. (11.15) अर्जुन ने कहा हे देव! मैं आपके शरीर में समस्त देवों को तथा अनेक भूतविशेषों के समुदायों को और कमलासन पर स्थित सृष्टि के स्वामी ब्रह्माजी को, ऋषियों को और दिव्य सर्पों को देख रहा हूँ। ।।11.15।। અર્જુન કહે છે: દેવ, તમારા દેહમાં સમાયા બધા લોક, કમળપરે બ્રહ્મા અને ઋષિ પણ ત્યાં છે કો'ક. .. ૧૫.. ---------
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