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Post by geetamanika on Oct 8, 2013 23:28:28 GMT 5.5
अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः .. ८\-५.. dl.dropbox.com/u/55233059/C07/SGeeta0805.mp3The One who leaves the body, at the hour of death, remembering Me attains My abode. There is no doubt about this. (8.05) और जो कोई पुरुष अन्तकाल में मुझे ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है, इसमें कुछ भी संशय नहीं। ।।8.5।। યાદ કરી પ્રેમે મને જે છોડે છે દેહ, તે પામી લે છે મને, તેમાં ના સંદેહ. --------- यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम् तं तमेवैति कौन्तेय सदा तद्भावभावितः .. ८\-६.. dl.dropbox.com/u/55233059/C07/SGeeta0806.mp3Remembering whatever object one leaves the body at the end of life, one attains that object, O Arjuna, because of the constant thought of that object (one remembers that object at the end of life and achieves it). (8.06) हे कौन्तेय ! (यह जीव) अन्तकाल में जिस किसी भी भाव को स्मरण करता हुआ शरीर को त्यागता है, वह सदैव उस भाव के चिन्तन के फलस्वरूप उसी भाव कोही प्राप्त होता है। ।।8.6।। જેને યાદ કરી તજે મૃત્યુ સમજે દેહ, તેને પામે જીવ આઅ, તેમાં ના સંદેહ. ---------
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